बकरीद क्यों मनाया जाता हैं

बकरीद का त्योहार मुस्लिम लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण त्योहार होता है। बकरीद को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाना जाता है। रमजान के लगभग 70 दिनों के बाद बकरीद को मनाया जाता है।

बकरीद में अन्य जानवरों जैसे भेड़, ऊंट, जैसे जानवरों की भी कुर्बानी दी जा सकती है लेकिन बकरे की कुर्बानी का अलग ही महत्व है तभी तो इसे बकरा ईद यानि की बकरीद कहते हैं।
इस्लामिक मान्यता के अनुसार, इस दिन हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को खुदा के हुक्म पर खुदा की मर्जी में कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उसके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व तब से मनाया जाता है।
इस दिन मुसलमान लोग अच्छे कपड़े पहनते हैं। महिलाएं विशेष खाने के व्यंजन बनाती हैं। सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर नए कपड़े पहनते हैं और ईदगाह में ईद की नमाज को लोग जाकर अदा करते हैं। नमाज के बाद एक दूसरे से गले मिलकर ईद की एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं, फिर इसके बाद जानवरों की कुर्बानी देना शुरू करते हैं।
इस्लाम धर्म में कुर्बानी शब्द का बहुत बड़ा महत्व है। यह क़ुरबानी अल्ल्हा को राज़ी – खुश करने के लिए दी जाती है। इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि एक बार जब अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम का इम्तिहान लेने की सोची, तो अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से कहा कि तुम्हें अपनी सबसे प्यारी चीज़ को कुर्बान करना होगा। हज़रत इब्राहिम को सबसे ज्यादा अज़ीज़ अपना बेटा हज़रत इस्माइल ही था।

हज़रत इब्राहिम को अल्लाह के हुक्म के आगे कुछ भी नहीं दिखा। जब हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे को यह बात बताई, तो वह कुर्बान होने के लिए राज़ी हो गया। और अल्लाह के हुक्म को अहमियत देते हुए वे अल्लाह की राह में अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए राज़ी हो गए।

इसके बाद जैसे ही हज़रत इब्राहिम ने आंखें बंद करके अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई, तो अल्लाह ने उनके बेटे की जगह वहां भेड़ को भेज दिया और हजरत के बेटे की जगह एक जानवर कट गया। इसी कहानी को आगे बढ़ाते हुए यह कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो गया और तब से हर साल मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह के नाम पर जानवरों की क़ुरबानी देते हैं।

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