क्या है जैन धर्म की सल्लेखना
चंद्रगिरी तीर्थ से एक बेहद भावुक खबर आई कि विश्व विख्यात जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने सलेख ना ले ली यानी अपना देह त्याग कर दिया। जैन धर्म में सल्लेखना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें देह त्यागने के लिए सुरक्षा से अन्न और जल को छोड़ दिया जाता है। आचार्य विद्यासागर जी महाराज जैन धर्म के सबसे प्रसिद्ध संत थे। मात्र 26 वर्ष की आयु में वो दिगंबर आचार्य बन गए थे। एक दिगंबर आचार्य लहसुन प्यास तो छोड़िए, नमक, चीनी, तेल, घी, दूध, फल आदि भी नहीं खाता।
आचार्य विद्यासागर जी दिन में केवल एक बार शादी दाल पीते थे। वो इतने आध्यात्मिक व्यक्ति थे कि उनके माता पिता तक ने उनसे दीक्षा ली थी और इसीलिए जब वो मृत्यु के निकट पहुंचे तो जैन धर्म की सलेखना प्रक्रिया के अनुसार उपवास करके अपने देह को धीरे धीरे ब्रह्म में लीन कर दिया। दोस्तों भारत में सल्लेखना का इतिहास बहुत पुराना है। मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य जी ने भी।