फ़िल्म में छोटी भूमिका से सीधा नायक बनने की कहानी

दूरदर्शन से मेरे मन की कस्तूरी का 52 एपिसोड बनाने के लिए अप्रूवल आ चुका था जल्द ही निर्माण की तारीखें पता चलने वाली थी मेरे ऊपर पटकथा के तैयार करने के साथ कलाकारों के चयन की भी जिम्मेदारी थी जिसमें मेरे सहयोग सोहम मैती भी दे रहे थें मेरे मेल में 400 से ज्यादा ईमेल भरे थे जिसमें से नायकों का चयन होना था लेकिन मेरे ऊपर बहुत अधिक दबाव और समयाभाव था ये जिम्मेदारी मैंने सोहम पर छोड़ी जो की खुद ना सिर्फ अच्छे अभिनेता हैं बल्कि कोलकाता से ही आते हैं लेकिन वो राज के लिए सही नही थे क्योंकि उनकी उम्र शायद कम थी मुझे राज जो की मुख्य नायक था उसके लिए बिल्कुल कारपोरेट लुक का कोई चाहिए था पटकथा लिखने से जो भी समय मिलता मैं मेल में से लड़को की तस्वीरें छाटता।

उसी में मुझे गौरव सिंह की तस्वीर मिली जो की उन्होंने दीनदयाल एक युगपुरुष के लिए भेजी थी लेकिन उनका चयन नही हुआ । गौरव से मेरी पहली मुलाकात फ़िल्म ग़ालिब के सेट पर कश्मीर में हुई थी तब हमारे बीच कोई बातचीत नही हुई थी और ना मैने उनके अभिनय में कोई दिलचस्पी ली थी। इसी समय मैंने विशाल दुबे के बारे में भी सोचा जो मेरे साथ कई बार काम कर चुके थे इसके अलावा अभिनेता विवेक मिश्रा भी दौड़ में थे लेकिन बात कही न कही अटक रही थी। गौरव से दूसरी मुलाकात दीनदयाल के सेट पर ही आखरी दिन हुई थी तब उन्हें अपने फ़िल्म में लेने की इकक्षा थीं। विशाल मेरे एक और धारावाहिक में चुन लिए गए थे सो उनका विकल्प समाप्त हो चुका था। मेल पर माथा पच्ची चालू थी । गौरव बेहद सकुंचित स्वभाव के साथ कम बोलने वाले में से हैं और हाइट भी अच्छी और लुक भी कुछ कुछ आसाम का लगता था मैंने अपनी मन की निर्माता घनशयाम पटेल और निर्देशक मनोज गिरी दोनो को बतायी दोनो मेरे से सहमत हुए थे। मैं गौरव से मिलने जुलने लगा हर बिताया हुआ पल उन्हें इस भूमिका के करीब लाने लगा और अंततः वो मेरे मन की कस्तूरी के मुख्य भूमिका के लिए चुन लिए गए। मेरे मन मे हमेशा एक बात रहेगी अगर वो गालिब की वो छोटी भूमिका ना करते तो इतनी बड़ी भूमिका ना कर पाते।
धीरज मिश्रा
लेखक ,निर्देशक

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