अजय का किरदार प्यार के परिसीमन को लांघता हैं

जब मैंने मेरे मन की कस्तूरी को गढ़ा तो उसमें अजय कही नहीं था वहाँ नायक राज के साथ एक महिला किरदार थी जो प्रेम त्रिकोण और कहानी में मसाला देने के लिए रक्खा गया था परंतु मुझे लगा की कहानी में महिला किरदारों की अतिश्योक्ति सी हो गयी हैं फिर राज नायक कुछ अकेला सा पड़ रहा था उसको बल देने के लिए अजय का किरदार गढ़ा जो सहनायक की तरह था ।

धारावाहिकों में अलग अलग मोड़ देने के लिए अलग अलग किरदार बनाये और गढ़े जाते हैं लेकिन अजय के पात्र ने मेरी एक और सहायता की, मेरे मन की कस्तूरी में प्रेम नही था क्योंकि नायक नायिका का मिलन कहानी के अंतिम भाग में होता हैं और ड्रामा से भरी इस कहानी में प्यार का तड़का देना भी आवश्यक था । अजय के साथ एक किरदार था जिसके साथ उसका प्यार दिखाया जाना था लेकिन दिक्कत थी दोनो किरदारों में प्यार को गढ़ने में उम्र की बाधा थी लेकिन मुझे लगता हैं प्यार हर सीमा से परे हैं और अजय को भी इस बात को साबित करना था ।

एक बार अजय का किरदार बना तो अब ये दिक्कत थी इसे निभाये कौन पहले ये किरदार विशुद्ध रूप से बंगाली रक्खा था लेकिन मुझे अहसास हुआ एक आसामी परिवार में यह किरदार शायद असहजता प्रस्तुत करता । मैं कोलकाता खूब रहा हूँ वहाँ मैंने कई हिंदीभाषीयों को सुगमता से रहते देखा था सो अजय भी वैसा बन गया। अभिनेता विवेक मिश्रा भी नायकों के दौड़ में थे लेकिन बाजी गौरव के हाथ लगी थी।

विवेक के चेहरे में एक मासूमियत हैं वो हर तरह से अजय के लिए उपयुक्त थे लेकिन मन मे शंका थी जब अपने से अधिक उम्र की नायिका के साथ रोमांस करते हुए देखेंगे तो लोग उन्हें सहजता से स्वीकार करेंगे की नही लेकिन निर्माता और निर्देशक दोनो ने मुझे बल दिया की ये सही फैसला हैं और कुछ हिचकिचाहट के साथ विवेक आजाद के किरदार के लिए चुन लिए गए चुकी हम काफी मिलते जुलते रहे सो उनके लिए मैने बड़ी सहजता से संवाद लिखे और उन्होंने उसे बड़ी शिद्दत के साथ निभाया । वो मुख्य नायक निजी जिंदगी में भी दोस्त हैं सो स्क्रीन पर वास्तविक दोस्त दिखें और उनकी जुगलबंदी न सिर्फ शूटिंग पर दिखी बल्कि लोगो ने भी खूब पसंद किया।

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