मेरे मन की कस्तूरी में कस्तूरी की सौतेली माँ के चयन की कहानी
मैं सालो बाद धारावाहिक लिख रहा था और निर्माण की भी जिम्मेदारी थी शुरुआत में दूरदर्शन में जो कहानी दी थी उसमें 104 कड़ियाँ प्रस्तावित थी लेकिन मिला सिर्फ 52, और शुरुआती पेपर साइन करने के लिए मैं और निर्माता घनश्याम जी दिल्ली गए हुए थे वही उज्ज्वला जी से मुलाकात हुई । दुबली पतली कदकाठी की गुवहाटी की उज्ज्वला स्वयं अपने धारावाहक के लिए आई थी वो खुद भी निर्मात्री थी साथ नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से स्नातक भी थी। मुझे एक सहायक की जरूरत थी जो कहानी को असमिया आचार विचार डाल सकें, मैंने उन्हें प्रस्ताव दिया हालांकि वो गंभीर नही देखी लेकिन मैंने उन्हें एक दिन फोन किया तब वो संयोग से मेरी ही ट्रेन में थी लेकिन हमारी मुलाकात नही हो पाई।
मुंबई आने के पश्चात वो घर आई और पटकथा पर सहयोग शुरू हुआ मैंने उन्हें निर्देशन टीम में भी रक्खा फिर उन्होंने अपने अभिनय की रुचि के बारे में बताया तो मुझे वो कस्तूरी की सौतेली माँ के रूप में ठीक लगी। इस तरह से उनका चयन मनोरमा के लिए हो गया। शूटिंग दो कैमरे से हो रही थी शुरुआत में उन्हें कॉफी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा बाद में सहज हो कर उन्होंने सौतेली माँ के रूप शसक्त भूमिका निभाई। वो जब भी घर आती बंगाल की मिठाई लेकर आती जो मुझे बेहद पसंद हैं।