अधिमास का क्या है महत्व

इस साल 2023 में अधिकमास की शुरुआत 18 जुलाई से हो रही है और 16 अगस्त को यह समाप्त हो जाएगा. अधिकमास को पुरुषोत्तम मास और मलमास के नाम से भी जाना जाता है.
सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक मास या अधिमास या मलमास कहते हैं।

सौर-वर्ष का मान ३६५ दिन, १५ घड़ी, २२ पल और ५७ विपल हैं। जबकि चांद्रवर्ष ३५४ दिन, २२ घड़ी, १ पल और २३ विपल का होता है। इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष १० दिन, ५३ घड़ी २१ पल (अर्थात लगभग ११ दिन) का अन्तर पड़ता है। इस अन्तर में समानता लाने के लिए चांद्रवर्ष १२ मासों के स्थान पर १३ मास का हो जाता है।

वास्तव में यह स्थिति स्वयं ही उत्त्पन्न हो जाती है, क्योंकि जिस चंद्रमास में सूर्य-संक्रांति नहीं पड़ती, उसी को “अधिक मास” की संज्ञा दे दी जाती है तथा जिस चंद्रमास में दो सूर्य संक्रांति का समावेश हो जाय, वह “क्षयमास” कहलाता है। क्षयमास केवल कार्तिक, मार्ग व पौस मासों में होता है। जिस वर्ष क्षय-मास पड़ता है, उसी वर्ष अधि-मास भी अवश्य पड़ता है परन्तु यह स्थिति १९ वर्षों या १४१ वर्षों के पश्चात् आती है। जैसे विक्रमी संवत २०२० एवं २०३९ में क्षयमासों का आगमन हुआ तथा भविष्य में संवत २०५८, २१५० में पड़ने की संभावना है।

अधिकमास से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरता का वरदान मांगा. लेकिन अमरता का वरदान देना निषिद्ध है इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई और वरदान मांगने को कहा.

 

तब हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से कहा कि, आप ऐसा वरदान दे दें, जिससे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर उसे मार ना सके और उसे वर्ष के सभी 12 महीनों में भी मृत्यु प्राप्त ना हो. उसकी मृत्यु ना दिन का समय हो और ना रात को. वह ना ही किसी अस्त्र से मरे और ना किसी शस्त्र से. उसे ना घर में मारा जाए और ना ही घर से बाहर. ब्रह्मा जी ने उसे ऐसा ही वरदान दे दिया.

 

लेकिन इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर और भगवान के समान मानने लगा. तब भगवान विष्णु अधिकमास में नरसिंह अवतार (आधा पुरुष और आधे शेर) के रूप में प्रकट हुए और शाम के समय देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया.

 

 

 

हिंदू धर्म के अनुसार, संसार के प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों (जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी) से मिलकर बना है. अधिकमास ही वह समय होता है, जिसमें धार्मिक कार्यों के साथ चिंतन-मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर में समाहित इन पंचमहाभूतों का संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है. इसलिए अधिकमास के दौरान किए गए कार्यों से व्यक्ति हर तीन साल में परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है.

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