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क्या ओशो की हत्या हुई थी

चन्द्रमोहन जैन वो लड़का जिसने महात्मा गांधी को भी चकमे में डाल दिया और जिसके लिए बा ने बापू से कहा आपको पहली बार टक्कर का मिला है । खैर इसके बारे में हम आगे बात करेंगे , हम जिस चन्द्रमोहन जैन की बात कर रहे हैं दुनियां में वो आगे चल कर  ओशो के नाम से प्रसिद्ध हुआ उसे भगवान रजनीश भी कहा जाता हैं। आज से करीब 23 वर्ष पुणे के आश्रम में 19 जनवरी 1990 को उनकी मृत्यु हो गई वैसे तो ओशो हमेशा विवादों में ही रहे लेकिन उनकी मौत भी आज भी विवादों में हैं। उनकी मौत प्राकृतिक थी या नहीं इस पर आज भी बहस जारी हैं ।

 
अब आते है शुरू वाली घटना पर जब चंद्रमोहन जैन नामका लड़का सिर्फ दस साल का था और रेलवे स्टेशन पर बेसब्री से बापू के इंतजार में था साल 1940 रहा होगा । चंद्रमोहन अपने दादी द्वारा दिए गए 3 रुपए भी लाया था जो वो गांधी जी को दान में देना चाहता था जो अपने जमाने में एक बड़ी रकम थी। खैर गांधी जी कई स्टेशन पर रुकते रुकते आ रहे थे वो समय से 13 घंटे लेट आए जिससे कई लोग वापस लौट गए लेकिन जैन डटा रहा उसकी ये दृढ़ता देख स्टेशन मास्टर भी प्रभावित थे क्यों चंद्रमोहन बापू से मिलने की जिद में न कुछ खाया न पिया ।
खैर जब उसकी बापू से मुलाकात हुई तो बापू ने मुस्कराते हुए पूछा तुम्हारी जेब में क्या हैं, बालक ने गर्व से कहा 3 रुपए , तो बापू ने कहा दान कर दो। 
गांधी जी के पास एक बक्सा था उसी में वो पैसे इकठ्ठे कर रहे थे लड़के ने पूछा आप इन पैसों का क्या करेंगे। बापू ने कहा ये पैसा गरीबों के लिए हैं बच्चे ने तपाक से कहा मेरे गांव में बहुत गरीब है क्या ये पैसे आप मुझे देंगे ये सुन गांधी जी तो आवाक रह गए उन्होंने बक्से को आगे करते हुए कहा की ले जाओ । ये सब सुनकर बा हंसने लगी और कहा अब मिला है शेर को सवा शेर। हालांकि वो बच्चा वहां से बिना बक्सा लिए भाग गया यही बच्चा आगे चल कर ओशो बना। 
 

ओशो का जन्म  1931 में  मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा गांव में हुआ ।  ओशो का असली नाम रजनीश चन्द्र मोहन जैन था उसे बचपन से ही  दर्शन में रूचि थी,  आगे चल कर दर्शन विभाग  के ही  प्रोफ़ेसर बन गए । जल्द ही ओशो सामाजिक रूप से लोगो के बीच जाकर प्रवचन देना शुरू किया। उन्हे पहली पहचान तब मिली जब साल  1969 में उन्हें दूसरे वर्ल्ड हिन्दू कॉन्फ्रेंस में बुलाया गया , यहां उन्होंने कहा,

”कोई भी ऐसा धर्म, जो जीवन को व्यर्थ बताता हो, वो धर्म नहीं है”.

उनके इस कहे का लोगो पर खूब असर हुआ । हालांकि
पुरी के शंकराचार्य नाराज हो गए उन्होंने सख्त ऐतराज जताते हुए  ओशो  का भाषण रुकवाने की भी कोशिश की।
अभी इस प्रवचन की चर्चा ठंडी भी नही हुई थी की उनकी एक किताब आ गई संभोग से समाधि और आते ही इसने हंगामा मचा दिया , किताब बेहद कंट्रोवर्सिअल थी । जल्द ही ओशो ने  पुणे के कोरेगांव पार्क में अपना आश्रम बनाया और यही  वो ध्यान सिखाते थे , अपनी अलग तरह के तरीके से बेहद जल्द यहां भक्तो की भीड़ आने लगी अपने खुले पन से 77 के दशक में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ओशो से नाराज थे जिसे भाप ओशो ने अमेरिका की राह चुनी।
अमेरिका के ओरेगॉन राज्य में बना रजनीशपुरम, ओशो के भक्तों ने एक बंजर जमीन पर आधुनिक सुविधा से लैश शहर बना दिया जिसमें कुल 7000 हजार लोग रह रहे थे।ओशो के पास कुल 93 रॉल्स रॉयस कारें थी , ओशो अब अमीरों के गुरु बन चुके थे ।
कई मशहूर हस्ती जिसमें विनोद खन्ना भी शामिल थे ओशो के भक्तों में थे खैर ओशो की मुख्य सहायिका मां शीला पर कई गंभीर आरोप लगे और उन्हें बीस साल की सजा हुई जल्द ही ओशो भी गिरफ्तार हुए हालांकि उन्होंने साफ कहा की उन्हे शीला के कृत्यों का पता नही । अमेरिका में बढ़ते मुश्किलों के चलते एक बार फिर वो भारत लौट आए और पुणे में लोगों से ध्यान लगवाने लगे ।  इस बार उनकी प्रसिद्धि पहले से ज्यादा थी ।
ओशो साल 85 में भारत आए थे लेकिन सिर्फ 5 साल ही जीवित रहे , 19 जनवरी 90 को 58 साल के ओशो की मौत की खबर आई। सबको उनकी मौत जहर से लगी , स्वयं की तरह उनकी मृत्यु भी विवादित थी । कहा जाता है जब वो अमेरिका के जेल में बंद थे तो उन्हें धीमा जहर दिया गया था जो शायद थेलियम हो सकता था खैर वहां से लौटने के बाद खुद ओशो भी कई मौके पर कह चुके थे की उन्हे शायद जहर दिया गया था और वो कमजोर हो रहे थे । उन्हे शक इसलिए भी था क्योंकि अमेरिका में उन्हे बिना कारण बताए गिरफ्तार किया गया और बेल भी नही दी गई और वही से उन्हे वो लक्षण दिखने लगें।
उनके मौत के बाद ये बाते भी उड़ी की ओशो की अकूत संपत्ति के लिए उनकी हत्या हुई इस पर एक किताब भी लिखी “व्हू किल्ड ओशो” जिसमें ये सवाल उठाया गया है की उनकी मौत वाले दिन डॉक्टर गोकुल गोकानी को एक आश्रम से एक अनजान व्यक्ति का काल आया की ओशो बीमार हैं लेकिन जब वो वहां पहुंचे तो पूरे 4 घंटे बाद उन्हे ओशो के कमरे में जाने दिया गया । एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति के कमरे में डॉक्टर को ना जाने देना मानों उसकी मौत का इंतजार किया जा रहा हो।  गोकुल ये भी सवाल उठाते है की वहां पहले से डॉक्टर थे फिर किसने उन्हे बुलाया और ओशो को हॉस्पिटल क्यों नही ले जाया गया उन्होंने ओशो के हाथ में उल्टी के छीटें भी देखे थे । जब गोकानी कमरे में गए थे ओशो को मरे एक घंटे हो चुके थे ये बात उन्हे अपने अनुभव से पता थी क्यों की ओशो का शरीर अभी भी गर्म था । गोकानी को ओशो का डेथ सर्टिफिकेट लिखने को कहा गया तब उन्होंने वहां मौजूद जयेश और अमृतो से ओशो की मौत की वजह पूछी तो उन्हें दिल की बीमारी से मौत की वजह बताया गया । फिर ओशो का अंतिम संस्कार भी आफरा ताफरी में जल्द कर दिया गया जब इस पर सवाल उठाया गया तो ओशो के अंतिम इक्क्षा का जिक्र गया हालांकि यह लिखित रूप में नही था।
साथ ही उनकी तबियत बिगड़ने पर उनकी मां को खबर नहीं दिया गया जब उनकी  सेक्रेटरी नीलम ने उनकी मां को ओशो के मरने की खबर दी तो उन्होंने कहा उन्हे उन लोगो ने मार दिया ।
उनके मौत के बाद एक वसीयत भी पेश की गई हालांकि आगे चल कर ये जांच में पाया गया की उस पर ओशो के जाली दस्तखत थे मामला अभी कोर्ट में ही है। ओशो भले ही आज हमारे बीच नहीं है लेकिन आज भी लाखो लोग उनकी किताबे पढ़ते है और उनके प्रवचन को उपलब्ध माध्यम से सुनते हैं ।

 

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