वास्तविक घटनाओं पर फिल्म बनाना हमेशा चुनौतीपूर्ण के साथ समय लेने वाला होता है : धीरज मिश्रा
मै दिल्ली के होटल में अपने कमरे में एक समाचार देख रहा था की अफजल गुरु के बेटे ग़ालिब गुरु ने हाई स्कुल की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया ये एक समान्य घटना नहीं थी क्योकि अफजल वही आतंकवादी था जो संसद हमले का दोषी था, उसकी पत्नी तब्बुसुम और बेटे ग़ालिब ने अफजल को फांसी से बचाने के लिए लम्बी लडाई लड़ी लेकिन वो असफल रहें । इस घटना के बाद मै कई रातें इस बारे में सोचता रहा , फिर सोचा एक ऐसी कहानी जिसमें एक आतंकवादी के परिवार वाले को क्या झेलना पड़ता हैं ऐसी कहानी पर फिल्म बनायीं जा सकती हैं ? इसी सोच के साथ ग़ालिब का जन्म का हुआ , ये कहना है फिल्म के लेखक धीरज मिश्रा का
बतौर धीरज जब उन्होंने ग़ालिब के बारे में पहली बार अपने दोस्त को बताया था तो उसने सिरे इसे ख़ारिज करते हुए कहा की एक आतंकवादी का महिमा मंडन ठीक नहीं है ।
एक लेखक के तौर पर मै बेहद सवेंदनशील हूँ मै जानता था ग़ालिब एक आतंकवादी का महिमा मंडन नहीं बल्कि एक पत्नी और बेटे का दर्द था जो अपने पति और पिता द्वारा किये गए कृत्यों के चलते उन्हें झेलना पड़ा ।
जब मैंने यह तय कर लिया की मुझे ग़ालिब पर फिल्म बनानी हैं और मुझे निर्माता के रूप में मेरे दोस्त घनश्याम पटेल मिल गए जो मेरी चापेकर ब्रदर्स के भी निर्माता रह चुके थे , मै कहानी के लिए साक्ष्य जुटाने लम्बी यात्रा पर निकल गया ।
वास्तविक घटना पर फिल्म बनाना हमेशा चुनौती पूर्ण के साथ ये बहुत अधिक समय लेने वाला होता है क्योकि जहाँ आप पहले पहुँचते है वहाँ पता चलता है की इसकी कुछ कड़ियाँ और है और ये सिलसिला चलता रहता है जब तक आप संतुस्ट नहीं हो जाते।
अपनी यात्रा में कई ऐसे पत्रकारों से मिला जिन्हें जेल में डाला गया था कुछ समाजसेवी ,सबसे कुछ न कुछ जानकारी मिली और मेरी पटकथा तैयार होते गयी । पटकथा में मैंने कई काल्पनिक घटनाओं को भी जोड़ा क्योकि अफजल के साथ कश्मीर भी हमेशा विवादों में रहा है एक जिम्मेदार लेखक के तौर पर मुझे इस चुनौती से भी निपटना था की फिल्म विवादों से दूर रहें ,हालंकि लोग जानबूझ कर ऐसा मसाला डालते हैं ताकि फिल्म गर्म हों ।
मै अपनी फिल्मो में सिर्फ लेखक के तौर पर नहीं जुड़ता मेरी सहभागिता फिल्म के निर्माण में भी होती है जिसमें कास्टिंग ,लोकेशन से लेकर हर वो चीज मेरी नज़रों के सामने से गुजरती है।
फिल्म में अफजल की पत्नी का किरदार बेहद महत्वपूर्ण था इसके लिए मै एक ऐसा चेहरा चाहता था जो इससे न्याय कर सकें , मेरी यह तलाश दीपिका चिखलिया के रूप में पूरी हुयी ।
वो पहले सीता बन चुकी थी और उनकी एक बड़ी इमेज है इसका डर था की लोग इसका विरोध करेंगे और किया भी जब फिल्म की ये खबर आई की वो ग़ालिब में पत्नी बन रही है तो सोशल मिडिया में हम दोनों को गालियाँ मिलने लगी मै असहज हो गया था क्योकि इससे पहले मैंने ऐसे महान क्रांतिकारियों पर फिल्म बनायीं थी जिन्होंने अपना सबकुछ देश के लिए अर्पण कर दिया था और मेरी हमेशा तारीफ़ होती आई थी चाहे वो जय जवान जय किसान में लाल बहादुर शास्त्री जी की फिल्म हो या पुणे के चापेकर बंधुओं पर बनी फिल्म चापेकर ब्रदर्स हो ।
ग़ालिब भी बायोपिक के तरह ही थी लेकिन विषय विवादित था , लेकिन मुझे अपनी पटकथा पर भरोसा था ये लोगो को भावुक कर देगी ये विशुद्ध रूप से एक माँ –बेटे के संबंधो पर आधारित देश प्रेम जगाने वाली फिल्म हैं ।
ग़ालिब की भूमिका में निखिल पितले कर रहे है , वो ग़ालिब से पहले मुझे एक फिल्म के लिए मिले थे तब बात नहीं बन पायी जब ग़ालिब लिखने लगा तो लगा वो बेहतर साबित होंगे और वो मुख्य भूमिका के लिए चुन लिए गए ।
ग़ालिब 23 सितम्बर को रिलीज हो रही है हालाँकि इसके लिए एक लम्बा इंतजार करना पड़ा लेकिन कोविड के चलते हम सबको इसका असर झेलना पड़ा है अब ये ज़िन्दगी का हिस्सा है ।
फिल्म का निर्माण गिरिवा प्रोडक्शन के तहत हुआ है ,सह निर्मात्री निमिषा पटेल है ,निर्देशन मनोज गिरी का है अन्य कलाकारों की बात करें तो अजय आर्या ,अनिल रस्तोगी ,अनामिका शुक्ला ,विशाल दुबे ,मेघा जोशी ,मंजेश पाण्डेय , प्रशांत राय ,आरती त्यागी विवेक त्रिपाठी प्रमुख है ।
लाईन प्रोडूयसर अविनाश कुमार और शालिनी सिंह और हुसैन है । फिल्म की शूटिंग प्रयागराज के अलावा भद्रवाह कश्मीर में हुई है ।
फिल्म के ट्रेलर यहाँ देखे