भद्रवाह का सबसे ऊंचा गांव कनसर
भारत अपनी विभिन्नताओं के लिए जाना जाता है आप जितनी जगह घूम ले कम हैं मैं एक फिल्मकार हूं और घुमकड़ मेरी प्रवृत्ति हैं और यही चीज मुझे हमेशा खास जगहों पर ले जाती है ।
पिछले महीने मैं भद्रवाह जिसे मिनी कश्मीर भी कहा जाता है उसकी यात्रा पर था और यही मुझे एक पहाड़ी गांव कंसर का पता चला।
कंसर जम्मू और कश्मीर के डोडा जिले की भद्रवाह तहसील में स्थित एक मध्यम आकार का गाँव है जिसमें कुल 69 परिवार रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, कंसर गाँव की जनसंख्या 429 है, जिसमें 219 पुरुष हैं, जबकि 210 महिलाएँ हैं।
कंसर गाँव में 0-6 आयु वर्ग के बच्चों की जनसंख्या 60 है, जो गाँव की कुल जनसंख्या का 13.99% है। कंसर गांव का औसत लिंग अनुपात 959 है जो जम्मू और कश्मीर राज्य के औसत 889 से अधिक है। जनगणना के अनुसार कंसर का बाल लिंग अनुपात 818 है, जो जम्मू और कश्मीर के औसत 862 से कम है।
भद्रवाह का कनसर गांव भी उन्हीं में से एक है। यहां गद्दी समुदाय के लोग रहते हैं और गांव की आबादी एक हजार है। लेकिन सड़क सुविधा होने के बावजूद उतना आवागमन मौजूद नहीं होने कारण लोग रोजाना भद्रवाह तक का पैदल सफर करने को मजबूर हैं। इसमें काफी संख्या विद्यार्थियों की है जो रेगुलर यातायात सुविधा नहीं होने से परेशान हैं। उनका अधिकतर समय आवागमन में ही बरबाद हो जाता है।
भद्रवाह का सबसे ऊंचा गांव कनसर लगभग 13 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए खड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है। लोगों को एक सूई तक के लिए भद्रवाह आना पड़ता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है के सरकार द्वारा ग्रामीणों को राशन भद्रवाह में दिया जाता है। जिसे लोग पीठ पर उठाकर घर पहुंचाने को मजबूर हैं।
खैर ये बात तो उनकी समस्या की है अब जो मैने वहां की खूबसुरती के बारे बताता हूं जब आप भद्रवाह से कंसर की तरफ़ जाएंगे तो चढ़ाई का अनुभव होगा रास्ते भर सीढ़ी दार खेत और और प्राकृतिक पानी के स्रोत मिलते जायेंगे इंसानी बस्ती कम दिखेंगे।
मैं पिछले अक्तूबर माह में भद्रवाह की यात्रा था नई फिल्म के लोकेशन देखने के लिए तब मेरे स्थानीय मित्र ने कनसर के बारे बताया और मैं तुरंत ही वहां जाने के लिए निकल गए । भद्रवाह से कनसर जाने के रास्ते में जाते वक्त बाहर का नज़ारा देखने योग्य था सीढ़ी दार खेत के साथ पानी के चश्मे और उन्हें इकट्ठा करने के लिए लकड़ी की बनी टंकिया सब कुछ एक तस्वीर की तरह लग रही थी।
जब हम टाप पर पहुंचे तो सामने ही आशापति पहाड़ की चोटियां दिखी मानो आप एक छालंग में वहां होंगे अमूनन आशापाती बर्फ से ढका होता हैं लेकिन पुरानी बर्फ पिघल चुकी थी और नई बस कुछ दिनों में पड़ने वाली थी।
चोटी पर पूरा गांव बसा हुआ था लोग अपने रोज मर्रा के काम में लगे थे चुकी जल्द ही बर्फ गिरने वाली थी से लोग अपने मक्के को समेटने में लगे थे यहां मक्का की खेती खूब होती हैं।
भद्रवाह शहर से जितने भी पहाड़ दिखते हैं यहां से सब सामने ही दिखते हैं । यहां आकर एक फिल्ममेकर के तौर पर तो खुशी हुई हीं लेकिन आम इंसान के तौर पर भी आपको कनसर आ कर स्वर्ग से अनुभूति मिलेगी।
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