आखिर क्यों 80 के दशक में लोगों ने सिनेमाघरों में जाना छोड़ दिया था
1980 का साल , यह वही साल था जब फिल्म इंडस्ट्री में बहुत सा बदलाव देखने को मिला। कुछ अच्छे बदलाव देखने को मिले तो कुछ अच्छी फिल्में भी रिलीज हुई। लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अगर हम फिल्म इंडस्ट्री के सबसे खराब समय की बात करें तो वो 80 का दशक ही था किन 3 स्टार्स की तूती बोलती थी। इस दशक में कैसे स्टार्स के साथ साथ एक्ट्रेस को भी इस दशक में सम्मान और फिल्में मिलने लगी। और इसी दशक में कैसे राज कपूर ने फिल्म को हिट कराने के लिए एक नए फार्मूले का इजात किया। इन सब पर आज की चर्चा रहेगी। नाइन्टीन एटी का दशक बॉलीवुड के लिए गेम चेंजर रहा था। 1 तरफ जहाँ देश के पॉलिटिक्स और अन्य मुद्दों को लेकर फिल्म बनाने की होड़ थी तो वहीं बॉलीवुड अपनी खो चुकी ऑडियंस को वापस थी में लाने के लिए भी संघर्ष कर रही थी। 80 के शुरुआत का समय ऐसा था की ऑडियंस थिएटर से गायब हो चुके थे। फिल्म इंडस्ट्री में अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र और मिथुन चक्रवर्ती ही तीन ऐसे एक्टर्स थे जो जैसे तैसे इस इंडस्ट्री को अपनी फिल्म ऐसी आगे बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए थे। दुश्मनों को माफ़ करना, इंसानि कारों को माफ़ करना है। सिंगल स्क्रीन में कोई नई फिल्म लगने के लिए तैयार नहीं था। ऐसा होने के कुछ कारण थे सेवेंटीज के आखिरी में और 80 की शुरुआत में अनेको फिल्में फ्लॉप रही। फिर वीडियो कैसेट पायरेसी का बाजार इतना बड़ा हो चूका था कि लोग थिएटर में जाकर 1 फिल्म देखने से अच्छा घर पर 4 फिल्मों के कैसेट चला कर देखना ज्यादा पसंद करने लगे। वीडियो पायरेसी पर अंडरवर्ल्ड का कब्जा था। जिसके विरोध में पहली बार बॉलीवुड के सभी बड़े एक्टर्स सड़क पर आ गए और वीडियो पायरेसी के खिलाफ आवाज उठाने लगे। थिएटर की हालत इतनी खस्ता हो चली थी की चंडीगढ़ के सिंगल स्क्रीन में सेवेंटीज की पुरानी फिल्में लगा करती थी। न्यू रिलीज फिल्मों का चाम खत्म हो चूका था। जीतेंद्र जो बुरे दौर से गुजर रहे थे उन्होंने 1 फिल्म प्रोड्यूस की जिसका नाम था दीदारे यार जिसमे उनके साथ ऋषि कपूर भी थे। लेकिन ये फिल्म फ्लॉप रही जिसके बाद वो किसी भी तरह की फिल्म करने के लिए तैयार रहते थे। उन्होंने 1 नए बिजनेस की शुरुआत की जहाँ वो साउथ की हिट मूवीज को हिंदी में बनाने लगे। उन्हें उसमे सुनहरा भविष्य दिखा। उन्होंने साउथ सुपर, स्टार, एन टी, आर और कृष्णा की फिल्मों का रीमेक करना शुरू कर दिया। इसमें स्टार कास्ट 1 दम फिक्स थी। हीरो जीतेंद्र, हीरोइन, श्रीदेवी या, जया प्रदा, विलेन कादर खान और शक्ति कपूर, मेल सिंगर, किशोर कुमार और फीमेल सिंगर, लता मंगेशकर और आशा भोसले, म्यूजिक डायरेक्टर, बप्पी लहरी और डायलॉग का जिम्मा भी कादर खान का होता था। वो साउथ की फिल्मों वाले डायलॉग्स को हिंदी में कनवर्ट करते थे और लिरिसिस्ट इन्दीवर रहते थे। ये 1 स्टैंड कास्ट रहती थी। दूसरा जो स्टार इस दशक में उबरा था वो था मिथुन चक्रवर्ती डिस्को डांसर फिल्म से वो रातों रात स्टार बन गए और उसके बाद कुछ लगातार हिट फिल्म्स ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। इनके अलावा अमिताभ बच्चन इस दशक में भी कामयाब रहे थे। लेकिन इनके सुपर स्टार की उपाधि का ये आखिरी दशक भी था। नाइनटीन एटी फाइव की मर्द और नाइनटीन टी सिक्स के आखिरी रास्ता के हिट होने के बाद शहंशा फिल्म फ्लॉप हुई और फिर ये फ्लॉप का सिलसिला सन 2000 की मोहब्बत तक चलता रहा। इस दशक में फिल्में न चलने का कारण था 1 ही सब्जेक्ट पर धडल्ले से फिल्मों का बनना। ये सारी एक्शन फिल्में होती थी। जिनके टाइटल में बदला, खून, कसम, इंसाफ, इंसानियत जैसे वर्ड्स का काफी यूज होता था। जैसे खून और पानी, खून का रिश्ता, खून की टक्कर, माटी, मांगे खून। इसके अलावा कम वक्त की फिल्मों में लाउड एक्टिंग का बोलबाला था। अब वीडियो पायरेसी खराब फिल्मों का निर्माण सिंगल थिएटर पर ताले लग ही रहे थे कि राज कपूर 1 नए ट्रेंड के साथ वापसी करते हैं। फिल्म थी राम तेरी गंगा मैली, जो 85 में रिलीज हुई थी। पहाड़ों में कहते हैं सच्चे दिल से, जिसे पुकारो वो जरूर आता है। इस फिल्म में कुछ ऐसे न्यूड सीन्स थे जो दर्शकों के लिए नया था। इस फिल्म में मंदाकनी ने डेब्यू किया था और राज कपूर के बेटे राजीव कपूर ने काम किया था। जो 1 सक्सेसफुल या पॉपुलर एक्टर नहीं थे, उसके बावजूद फिल्म हिट रही तो प्रोड्यूसर्स को समझ आ गया कि बिना खून खराबा दिखाए और बिना बड़े स्टार्स को कास्ट किए भी न्यूडिटी को सेंटर में रखकर फिल्में हिट हो सकती है। नतीजा की बॉलीवुड में बी ग्रेड की फिल्मों का चलन शुरू हो गया। ये फिल्में आर्ट फिल्म के तौर पर भी बनी तो मैक्सिमम टाइम सेक्स का फार्मूला हॉरर फिल्मों में यूज किया गया। राम से ब्रदर्स ने हॉरर और सेक्स के बलबूते अपनी 1 अलग ऑडियंस बना ली। इसके बाद जो 1 बड़ा बदलाव इस दशक में हुआ वो था हीरो की परिभाषा में बदलाव। अब तक लंबे चौड़े सुंदर एक्टर्स को हीरो के रूप में दिखाया जाता था। लेकिन इस दशक में अनुपम, खेर, नसीरूदीन, शाह, ओमपुरी जैसे एक्ट्रेस ने बॉलीवुड में कदम रखा और 8 फिल्म और पैरलल फिल्म को पसंद करने वाली 1 ऑडियंस तैयार हुई। जिन्होंने सारांश, अर्धसत्य, आक्रोश, स्पर्श और जाने भी 2 यारो जैसी फिल्मों को एक्सेप्ट करना शुरू कर दिया। सिर नारायण चलो के नाम के आदमी को जला कर मारा गया है। हालांकि पथार, पंचाली, द वर्ल्ड ऑफ अप्पू जैसी 8 फिल्म्स ब्लैकेंड वाइट के जमाने में भी बनती थी। बट टीस में इसका मार्केट बड़ा होता चला गया, जो आज भी कायम है। फिर भी यह दशक बॉलीवुड के लिहाज से खराब दशक कहलाता है। इस दशक में करीब 1600 फिल्मों का निर्माण हुआ था, जो उस वक्त तक किसी भी दशक में नहीं बनी। खैर, जो बची खुशी उम्मीद थी, भी फिल्मों से, उसे दूरदर्शन ने पूरी तरह से समाप्त कर दिया। रामायण और महाभारत जैसे सीरियल्स ने थिएटर की सीट पर जंग लगने का काम कर दिया। इन सीरियल्स का इतना वर्चस्व था कि सिनेमा हॉल्स में एडवटाइज किया जाता था की फिल्म का पहला शो महाभारत के खत्म होने के बाद शुरू होगा। दूरदर्शन आने वाला फ्यूचर बन चूका था और इस बात को अनेको फिल्म प्रोड्यूसर्स ने भांप भी लिया था। यही कारण है की बी, आर चोपड़ा, अजीज मिर्जा, कुंदन शाह और रमेश सिप्पी जैसे डायरेक्टर प्रोड्यूसर्स दूरदर्शन पर टैली सीरियल्स बनाने में लग गए हैं। इस दशक के अंत में कुछ यंग डायरेक्टर्स ने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा जैसे मंसूर खान और सूरज बरजात्या जिन्होंने 1 नए तरह की फिल्म मेकिंग और नए विजन के साथ फिल्में बनानी शुरू की। कयामत से कयामत तक और मैंने प्यार किया जैसी फिल्में बनाई जिन्होंने फिल्म के साथ साथ म्यूजिक इंडस्ट्री को भी वापस खड़ा करने में योगदान दिया। एक्शन मूवीज धीरे धीरे फैमिली ड्रामा में तब्दील होने लगी और लोगों को वो पसंद भी आने लगा था। इसलिए एटीएस के आखिरी के सालों में ऑडियंस वापस थिएटर की तरफ रुख करने लगी थी। ये 1 ऐसा दशक था जब फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं देश में पॉलिटिकल उथल पुथल के साथ बाकी क्षेत्रों में भी बहुत फेर बदल हो रहा था जिसके कारण भी बॉलीवुड का ग्राफ नीचे जाने लगा। अफकोर्स इस दशक में नाम, मेरी, जंग, हीरो, राम, लखन, परिंदा, मिस्टर, इंडिया घायल जैसी फिल्में भी बनी जिनमे काम करने वाली एक्ट्रेस आगे चलकर बड़े स्टार्स बने।