अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर आव्रजन नियमों को कड़ा कर दिया है। इस बार सबसे बड़ा झटका उन लाखों भारतीयों को लगा है, जो अमेरिका में H-1B वीज़ा पर काम कर रहे हैं या वहां पढ़ाई और नौकरी का सपना देख रहे हैं।
H-1B वीज़ा शुल्क में भारी उछाल
एक अध्यादेश के तहत अब H-1B वीज़ा शुल्क $1,000 से बढ़ाकर सीधे $100,000 कर दिया गया है। यह नियम नए वीज़ा और नवीनीकरण दोनों पर लागू होगा और 21 सितंबर से प्रभावी होगा। इसका मतलब है कि जो भी कर्मचारी या कंपनी 21 सितंबर के बाद वीज़ा से जुड़ी प्रक्रिया करेगी, उसे यह भारी शुल्क देना होगा।
टेक कंपनियों में हड़कंप
इस घोषणा के बाद अमेरिकी टेक कंपनियों में चिंता की लहर दौड़ गई है। माइक्रोसॉफ्ट ने अपने H-1B कर्मचारियों को तुरंत अलर्ट जारी करते हुए अमेरिका में मौजूद कर्मचारियों को देश न छोड़ने की सलाह दी है। वहीं, जो कर्मचारी अमेरिका से बाहर हैं, उन्हें जल्द से जल्द लौटने का आदेश दिया गया है। अगर वे तय समय पर नहीं लौट पाते, तो उन्हें $100,000 का शुल्क भरकर ही प्रवेश मिलेगा।
भारतीयों पर गहरा असर
गौरतलब है कि H-1B वीज़ा का सबसे ज्यादा फायदा भारतीय इंजीनियरों और आईटी प्रोफेशनल्स को मिला है। पिछले वर्षों में लगभग 70% H-1B वीज़ा भारतीयों को जारी हुए थे। 2023 में H-1B कर्मचारियों का औसत वेतन $118,000 था, ऐसे में $100,000 का शुल्क देना न तो कर्मचारियों के लिए संभव है और न ही प्रायोजक कंपनियों के लिए।
नीति के पीछे उद्देश्य
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों को अमेरिकी नागरिकों के लिए सुरक्षित करना है। उनका आरोप है कि बड़ी टेक कंपनियाँ विदेशी कर्मचारियों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे अमेरिकी युवाओं को रोजगार के अवसर कम मिलते हैं।
कानूनी चुनौती की तैयारी
इमिग्रेशन विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले को अमेरिकी अदालतों में चुनौती दी जाएगी। कई सलाहकार H-1B कर्मचारियों को फिलहाल बाहर ही रहने की सलाह दे रहे हैं, ताकि अदालत के फैसले के बाद उनके लिए अमेरिका में प्रवेश आसान हो सके।
भारतीय छात्रों पर संकट
यह बदलाव भारतीय छात्रों के लिए भी मुश्किलें बढ़ा देगा। हाल ही में भारतीय छात्रों की संख्या अमेरिका में चीनी छात्रों से भी आगे निकल गई थी। लेकिन नौकरी के अवसरों में कमी और वीज़ा नियमों की सख्ती उनके लिए पढ़ाई और ऋण चुकाना और कठिन बना सकती है।
“ट्रंप गोल्ड कार्ड” – नया रास्ता
ट्रंप ने स्थायी निवास पाने का एक नया विकल्प भी पेश किया है, जिसे “ट्रंप गोल्ड कार्ड” कहा गया है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति को अमेरिका की ग्रीन कार्ड जैसी स्थायी सुविधा पाने के लिए $1 मिलियन (करीब 8.3 करोड़ रुपये) चुकाने होंगे। वहीं, यदि कोई कंपनी अपने कर्मचारी के लिए यह कार्ड लेना चाहती है तो उसे $2 मिलियन का भुगतान करना होगा।
निष्कर्ष
ट्रंप की यह नीति अमेरिकी राजनीति में दक्षिणपंथी दबाव का नतीजा मानी जा रही है। लेकिन इसका सीधा असर भारतीय पेशेवरों और छात्रों पर पड़ेगा, जो दशकों से अमेरिका की अर्थव्यवस्था और टेक सेक्टर की रीढ़ माने जाते रहे हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा न केवल अमेरिकी अदालतों बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी बहस का विषय बन सकता है।
Leave a Reply