रणजीत चौधरी: मुस्कान छोड़ जाने वाले कलाकार की याद

19 सितम्बर 1955 को मुंबई में जन्मे रणजीत चौधरी 70 और 80 के दशक के ऐसे अभिनेता थे, जिनका करियर भले ही छोटा रहा, लेकिन उनकी भूमिकाएँ आज भी दर्शकों की यादों में जीवंत हैं।

रणजीत मशहूर रंगमंच कलाकार पर्ल पदमसी के बेटे और अलीक पदमसी के सौतेले पुत्र थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई कैंपियन स्कूल, मुंबई से की और फिल्मों में डेब्यू बासु चटर्जी की ‘खट्टा मीठा’ (1978) से किया। इसके बाद वे ‘बातों-बातों में’ (1979) और हृषिकेश मुखर्जी की ‘खूबसूरत’ (1980) जैसी फिल्मों में नजर आए। 1981 में स्मिता पाटिल अभिनीत ‘चक्र’ और अमिताभ बच्चन की ‘कालिया’ में भी उन्होंने अभिनय किया।

कुछ ही फिल्मों में उन्होंने ऐसा असर डाला कि दर्शक उन्हें लंबे समय तक याद करते रहे। 1980 के दशक में वे अमेरिका चले गए और वहाँ भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई। उन्होंने दीपा मेहता की ‘Sam & Me’ की पटकथा लिखी और अभिनय किया, जिसे 1991 के कान्स फिल्म फेस्टिवल में सराहना मिली।

इसके बाद वे ‘मिसिसिपी मसाला’ (1991), ‘बैंडिट क्वीन’ (1994), ‘फायर’ (1996), ‘बॉलीवुड/हॉलीवुड’ (2002) और ‘लास्ट हॉलीडे’ (2006) जैसी फिल्मों में दिखाई दिए। टीवी पर भी उनकी उपस्थिति दर्ज हुई—‘The Office’ में वे विक्रम बने और ‘Prison Break’ में भी भूमिका निभाई।

रणजीत लेखन और रंगमंच से भी जुड़े रहे। उन्होंने ‘मालगुडी डेज़’ के लिए संवाद लिखे और ‘Rafta Rafta’, ‘An Ordinary Muslim’ जैसे नाटकों का हिस्सा बने।

2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मुंबई में उपचार के लिए रुके रणजीत का 15 अप्रैल को आंत संबंधी सर्जरी के बाद निधन हो गया। वे अपनी पत्नी मालिनी और बेटे अवीशाय चौधरी को पीछे छोड़ गए।

उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर लिखा है—“प्यारे, हाज़िरजवाब, ऊर्जा से भरपूर… रणजीत हमेशा मुश्किल घड़ी को मुस्कान में बदल देते थे।” सच ही है—रणजीत चौधरी को याद करते ही चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ जाती है।

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