हाल ही में फिल्म उद्योग ने एक बहुमूल्य रत्न खो दिया—गायिका और अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित। अपनी मीठी आवाज़, सरल स्वभाव और मासूम दिल वाली सुलक्षणा जी को इंडस्ट्री में बेहद सम्मान से देखा जाता था। लोग उन्हें एक समर्पित कलाकार और भावनाओं से भरी इंसान के रूप में याद करते हैं। उनकी निजी जिंदगी उतार-चढ़ाव, संघर्ष और अधूरी प्रेम कहानी से भरी रही—जिसे सुनकर आज भी दिल भर आता है।
संगीत से सजी शुरुआत, और परिवार की ज़िम्मेदारियाँ
सुलक्षणा पंडित एक प्रतिष्ठित संगीत परिवार से आती थीं। महान शास्त्रीय गायक पंडित जसराज उनके चाचा थे। घर का माहौल सुरों से भरा था और यही वजह रही कि उन्होंने छोटी उम्र से ही गाना शुरू कर दिया।
केवल नौ साल की उम्र में ही वे प्रोफेशनल सिंगिंग करने लगीं। आर्थिक मुश्किलों के दौर में उन्होंने अपने छह भाई-बहनों की जिम्मेदारी भी उठाई।
उनके परिवार में संगीतकार जतिन-ललित, बहन विजेता पंडित, और भाई मंदीर शामिल हैं।
गायिकी में पहचान और बड़ा मुकाम
60 के दशक के अंत में फिल्मों में गाना शुरू करने वाली सुलक्षणा को शुरुआत में छोटे गाने मिले, लेकिन एक समय आया जब उनकी मधुर आवाज़ ने सबका दिल जीत लिया।
फिल्म ‘संकल्प’ के गीत ‘तू ही सागर है तू ही किनारा’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। यह उनके करियर का सबसे चमकदार समय था।
संजीव कुमार से मोहब्बत—एक अधूरी प्रेम कहानी
फिल्म ‘उलझन’ की शूटिंग के दौरान उनका दिल अभिनेता संजीव कुमार पर आ गया।
दोनों ने कई खूबसूरत पल साथ बिताए, और सुलक्षणा ने साहस करके उनसे शादी का प्रस्ताव भी रखा।
लेकिन संजीव कुमार ने इस रिश्ते को नाम देने से इंकार कर दिया।
दो वजहें बताई जाती हैं—
1. संजीव कुमार हेमा मालिनी को भूल नहीं पाए थे, जिनसे उन्हें एकतरफा प्यार था।
2. उनकी बहन विजेता के अनुसार, संजीव कुमार अपनी खराब सेहत के कारण सुलक्षणा को विधवा छोड़ने का डर रखते थे।
दोनों एक-दूसरे को बेहद चाहते थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें एक नहीं होने दिया।
1985 में संजीव कुमार का निधन हुआ, और सुलक्षणा भीतर तक टूट गईं।
डिप्रेशन, अकेलापन और जिंदगी की लड़ाई
माता-पिता और फिर अपने प्रेमी को खो देने के बाद सुलक्षणा का जीवन बिखर गया।
वह गहरे डिप्रेशन में चली गईं और काम से दूर हो गईं।
इसी दौरान एक दिन बाथरूम में गिरने से उन्हें गंभीर हिप इंजरी हुई। महीनों बिस्तर पर रहने से उनकी हालत और बिगड़ती गई।
पैसों की तंगी बढ़ी तो अभिनेता जितेंद्र ने आगे बढ़कर उनकी मदद की—घर बिकवाकर उनका कर्ज चुकवाया और उन्हें रहने के लिए तीन फ्लैट दिलवाए।
उनकी बहन विजेता पंडित और पति आदेश श्रीवास्तव उनका सबसे बड़ा सहारा बने।
आदेश के 2015 में निधन के बाद भी विजेता ने बहन की सेवा जारी रखी।
परिवार की एक और त्रासदी
2012 में उनकी बहन संध्या की रहस्यमयी मौत ने परिवार को हिला दिया।
लेकिन विजेता ने यह खबर सुलक्षणा से छिपाए रखी क्योंकि उनकी मानसिक स्थिति इसे सहन नहीं कर पाती।
6 नवंबर—एक तारीख, दो मौतें, एक कहानी का अंत
6 नवंबर 2025 को सुलक्षणा पंडित के निधन की खबर आई।
सबकी आंखें नम हो गईं, लेकिन लोगों को सबसे ज्यादा चौंकाया इस तारीख के संयोग ने—
6 नवंबर 1985
संजीव कुमार का निधन।
6 नवंबर 2025
ठीक 40 साल बाद, उसी दिन…
सुलक्षणा पंडित भी इस दुनिया से चली गईं।
लोग कहते हैं—
“धरती पर अधूरी रही प्रेम कहानी शायद ऊपर जाकर पूरी हो गई।”
एक मासूम, सुरमयी और दर्द से भरी आत्मा
सुलक्षणा पंडित का जीवन हमें यह सिखाता है कि सफलता के पीछे कभी-कभी कितना गहरा अकेलापन और संघर्ष छिपा होता है।
उन्होंने अपने परिवार को संभाला, फिल्मों में सुनहरी पहचान बनाई, लेकिन अपने दिल का दर्द जीवनभर साथ ढोया।
आज उन्हें याद करते हुए सिर्फ एक ही बात दिल में आती है—
उन्होंने बहुत दिया, पर बदले में ज़िंदगी ने उन्हें बहुत कम लौटाया।
उनकी आत्मा को शांति मिले।













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