भारत के मेघालय राज्य के पूर्वी खासी पहाड़ों में एक छोटा-सा गांव है जिसका नाम है कॉन्थोंग। यह गांव दुनिया भर में अपनी अनोखी परंपरा के कारण जाना जाता है — यहाँ लोग एक-दूसरे को नाम से नहीं, बल्कि सीटी (सीटी की धुन) से बुलाते हैं।
यह रूप पहले से ही सदियों से चली आ रही पारंपरिक भाषा का हिस्सा है। हर व्यक्ति के लिए एक अलग-अलग सीटी धुन तय की जाती है, जो उसी व्यक्ति की पहचान बन जाती है। जब कोई दूर होता है—खेती में, जंगल में या घाटियों में—तो लोग सिर्फ वही अपनी धुन बजाते हैं और सामने वाला तुरंत समझ जाता है कि उसे कौन बुला रहा है।
कैसे शुरू हुई यह परंपरा?
कॉन्थोंग की भौगोलिक स्थिति बहुत ही कठिन है — ऊँचे पहाड़ और गहरी घाटियाँ। ऐसी जगहों पर आम बोलचाल की आवाज़ें दूर तक नहीं पहुँच पातीं, लेकिन सीटी की तेज आवाज़ दूर-दूर तक गूँजती है। इसी कारण गाँव वालों ने पहले इस सीटी को एक तरह की भाषा के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया।
नाम की जगह सीटी धुन
यह परंपरा जन्म के तुरंत बाद शुरू हो जाती है। बच्चे को उसकी मां एक अनोखी सीटी धुन देती है, जो उस बच्चे की पहचान की तरह जीवनभर रहती है। गाँव में लगभग 700 से अधिक लोग रहते हैं और हर एक व्यक्ति का अपना अलग-अलग सीटी नाम होता है।
संस्कृति और आकर्षण
यह अनोखी भाषा-परंपरा न सिर्फ ग्रामीणों के रोज़मर्रा के संवाद का हिस्सा है, बल्कि इससे यह गांव “व्हिसलिंग विलेज” यानी सीटी वाला गांव कहलाने लगा है। पर्यटक भी इस अनोखी संस्कृति को देखने और अनुभव करने के लिए यहाँ आते हैं, जिससे इस गांव की पहचान और भी बढ़ी है।















Leave a Reply