लेख:
त्योहारी सीजन से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर आकर उपभोक्ताओं के लिए बड़ा तोहफा दिया। सरकार ने घर, टीवी, फ्रिज, स्कूटर, बाइक और कार जैसे रोज़मर्रा और लक्ज़री उत्पादों पर जीएसटी दरों में कटौती की घोषणा की। इससे पहले आयकर में भी बड़ी राहत दी गई थी। उद्देश्य साफ है—लोगों की जेब में बची रकम को खर्च करवाकर बाजार की मांग को बढ़ाना।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पहल ज़मीन पर उतनी ही असरदार साबित होगी, जितनी टीवी स्क्रीन पर दिखती है?
दुकानदारों की दुविधा
थोक व्यापारी और दुकानदार उन उत्पादों को पुरानी, ऊँची जीएसटी दर पर खरीद चुके हैं। अब जब उन्हें नई, कम दरों पर बेचना है तो घाटे का डर साफ झलक रहा है। दूसरी तरफ, उपभोक्ता व्हाट्सएप पर नई कीमतों की लिस्ट देखकर तुरंत सस्ती दरों पर सामान चाहते हैं। नतीजा—बाजार में अविश्वास और असमंजस की स्थिति।
कार्यान्वयन की चुनौतियाँ
जीएसटी कटौती का वास्तविक लाभ ग्राहकों तक पहुँचाना तभी संभव है जब ट्रांजेक्शन प्रक्रिया सुचारू हो और खुदरा विक्रेताओं पर इसका पूरा बोझ न डाला जाए। वरना, सरकार की राहत योजना दुकानदारों और उपभोक्ताओं के बीच तनाव का कारण ही बन सकती है।
प्रधानमंत्री का व्यापक संदेश
मोदी ने इस घोषणा को सिर्फ उपभोक्ता राहत तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने “विदेशी चीजों से मुक्ति” और भारतीय उत्पादों की बिक्री बढ़ाने की अपील करते हुए आत्मनिर्भर भारत का नारा और बुलंद किया। यह अमेरिका और चीन जैसे देशों के लिए एक राजनीतिक संदेश भी है कि भारत अपने घरेलू बाजार को सुरक्षित और मजबूत करना चाहता है।
सफलता की असली कसौटी
हालांकि, असली सफलता तभी मिलेगी जब कंपनियाँ जीएसटी कटौती से हुई बचत का लाभ वास्तव में ग्राहकों तक पहुँचाएँ।
बेरोजगारी कम हो और वेतन में वास्तविक वृद्धि दिखाई दे।
यदि ऐसा नहीं हुआ तो रेपो रेट घटने के बावजूद होम लोन दरों में बढ़ोतरी जैसी “अनोखी” स्थितियाँ बनी रहेंगी और उपभोक्ता मांग में बड़ा उछाल देखने को नहीं मिलेगा।
त्योहारी सीजन में सरकार का यह कदम राहत का संदेश तो देता है, मगर लागू करने की चुनौतियाँ बताती हैं कि उपभोक्ता मांग बढ़ाना केवल टैक्स छूट से संभव नहीं, बल्कि रोज़गार और आय में सुधार इसकी असली कुंजी है।















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