तिरुवनंतपुरम। केरल का ज़िक्र आते ही अक्सर बैकवॉटर, हरियाली और नारियल के पेड़ याद आते हैं, लेकिन इस राज्य की असली पहचान उसकी महिलाएँ बन चुकी हैं। यहाँ महिलाएँ केवल घर-परिवार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
पहली बार केरल आने वाले लोग अक्सर हैरान रह जाते हैं जब वे देखते हैं कि महिलाएँ नारियल के पेड़ पर चढ़कर काम कर रही हैं, भारत की पहली वाटर मेट्रो की सफाई संभाल रही हैं, घर-घर से प्लास्टिक कचरा इकट्ठा कर रही हैं और मात्र 20 रुपये में ज़रूरतमंदों को पूरी थाली का भोजन उपलब्ध करा रही हैं।
इन सबके पीछे है ‘कुदुम्बश्री’ योजना, जो केरल सरकार की एक अनोखी पहल है। इस योजना की खासियत यह है कि इसका लक्ष्य हर घर की कम-से-कम एक महिला को रोज़गार उपलब्ध कराना है।
आज कुदुम्बश्री भारत का सबसे बड़ा स्वयं सहायता समूह बन चुका है। इसकी ताक़त का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि 2018 की विनाशकारी बाढ़ के दौरान कुदुम्बश्री से जुड़ी महिलाओं ने सामूहिक रूप से 7 करोड़ रुपये का दान दिया। यह राशि गूगल जैसी वैश्विक कंपनी द्वारा दिए गए दान से भी अधिक थी।
योजना का असर साफ दिखाई देता है। अद्वितीय कौशल और सामुदायिक भागीदारी की बदौलत आज केरल महिला रोज़गार में देश में दूसरे स्थान पर है और यहाँ गरीबी का स्तर सबसे कम है।
कुदुम्बश्री ने यह साबित कर दिया है कि अगर महिलाओं को सही अवसर और मंच मिले तो वे समाज और अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकती हैं। यही वजह है कि आज केरल का यह मॉडल पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है।
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