पुरानी हँसी, नया पैकेट: ‘किस किसको प्यार करूं 2’ की उलझी कॉमेडी

फिल्म समीक्षा | धीरज मिश्रा

किसी भी सीक्वल की सबसे बड़ी परीक्षा यही होती है कि वह पहली फिल्म की यादों को आगे बढ़ाए, न कि उन्हें बोझ बना दे। किस किसको प्यार करूं 2 इसी कसौटी पर लड़खड़ाती नज़र आती है। यह फिल्म न तो पूरी तरह नई है, न ही पुरानी सफलता को ईमानदारी से दोहराने में कामयाब।

पहली किस किसको प्यार करूं एक हल्की-फुल्की घरेलू कॉमेडी थी, जिसे दर्शकों ने घर पर देखने लायक मनोरंजन के तौर पर स्वीकार किया था। लेकिन उसके सीक्वल में वही फॉर्मूला, वही शोर और वही भ्रम—बस नए दौर की पैकिंग में—दोबारा परोसा गया है।

कहानी एक ऐसे शख़्स के इर्द-गिर्द घूमती है जो हालात और गलतफहमियों के चलते अलग-अलग परिस्थितियों में कई शादियों के जाल में फँस जाता है। फिल्म धर्म, शादी और पहचान जैसे संवेदनशील विषयों को कॉमेडी के ज़रिये छूने की कोशिश करती है, लेकिन यह कोशिश सतही ही रह जाती है। जहां बात चुभनी चाहिए थी, वहां फिल्म शोर मचाकर निकल जाती है।

कपिल शर्मा अपनी जानी-पहचानी कॉमिक टाइमिंग में नज़र आते हैं और कुछ जगहों पर मुस्कान ज़रूर लाते हैं, लेकिन कमजोर पटकथा उन्हें खुलकर खेलने का मौका नहीं देती। सह-कलाकारों की मौजूदगी भी ज़्यादातर शोर बढ़ाने तक सीमित रह जाती है।

फिल्म का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसका पूरा सेट-अप पहले आधे घंटे में ही खत्म हो जाता है। इसके बाद कहानी पुराने 90 के दशक की कॉमेडी फिल्मों की तरह खिंचती चली जाती है—जहां ज़ोर से बोले गए संवाद और दोहराए गए हालात ही हास्य का आधार बन जाते हैं।

किस किसको प्यार करूं 2 कुछ क्षणों के लिए मनोरंजन करती है, लेकिन याद रह जाने वाली फिल्म नहीं बन पाती। यह टीवी स्केच और बड़े पर्दे के सिनेमा के बीच कहीं अटकी हुई महसूस होती है।

फैसला:
अगर आप बिना ज़्यादा उम्मीद के सिर्फ समय काटने के लिए देखना चाहते हैं, तो एक बार देखी जा सकती है। लेकिन अगर आप नई सोच या ताज़ा कॉमेडी की तलाश में हैं, तो यह फिल्म निराश कर सकती है।

⭐⭐ (2/5 स्टार)

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