लता दीदी के जाने से भारतीय संगीत में एक शून्यता रहेगी- लेखक धीरज मिश्रा
बात उन दिनों की हैं जब मैं खुदी राम बोस पर फ़िल्म बना रहा था और मुझे पता चला सालों पहले बनीं फ़िल्म में उन्होंने एक बार विदाई दे माँ गाना बंगाली में गाया था बस मेरे मन मे आया काश लता दी भी एक बार इस गाने को दें और मैं उनसे संपर्क करने के प्रयास में जुट गया लेकिन किसी तरह से उनसे संपर्क नहीं हो पाया मैं निराश हो गया था फिर एक दिन मैं सीधा उनके घर चला गया लेकिन वॉचमैन ने मुझे उनके घर मे नही जाने दिया फिर मैंने वही से उनके लिए एक चिट्ठी भेजी और जवाब के लिए वही रुका रहा कुछ देर बाद ऊपर से फोन आया कि आप कल सुबह आये साथ ही उनके केयर टेकर का नंबर भी दिया। उस रात मुझे नींद ही नही आई लगा रात लंबी हो चली खैर सुबह मैं उनके घर पहुँचा ये एक और मुसीबत थी वो दक्षिण मुंबई में रहती थी और सूबह के समय उस तरफ़ जाने के लिए बहुत ट्रैफिक होता था। खैर नियत समय पर मैं वहाँ पहुँच गया और मेरे सामने साक्षत सरस्वती की मूर्ति बैठी थी उन्होंने हँसते हुए कहा ऐसे कोई चिट्ठी लिखता हैं उन्होंने मेरी पिछली फिल्म चापेकर ब्रदर्स के बारे में पूछा और तुरंत ही खुदीराम में गाने के लिए मान गयी लेकिन एक शर्त रक्खी की वो सिर्फ मुखड़ा गाएंगी वो भी बंगाली में बाकी हिस्सा उनकी बहन उषा मंगेशकर गाएंगी वो हिंदी में होगा उन्हें गाने के बोल बहुत पसंद आये। अप्लम चपलम के बाद ये पहला मौका था जब दोनों बहनें साथ गाने वाली थी । हालांकि दीदी की तबीयत लगातार खराब रहने लगी और अंत मे उन्होंने उषा से ही गवाने को कहा । उन्होंने मेरे चापेकर फ़िल्म के प्रोमो देखे तो कहा आर्ट तो बहुत अच्छा हैं क्या मेरे गणपति की सजावट आप करवा दोगे मैंने अपने आर्ट डायरेक्टर से उनकी बात करवाई और उनके कुल देवी की मूर्ति के बीच मे सजावट हुई।
मेरे उनके घर आने जाने का सिलसिला बन पड़ा उन्होंने अपने कुछ बिना रिलीज वाले भजन के गाने दिए जो कि बहुत अद्भुत थे उन्हें इस बात का मलाल था कि वो मेरे लिए गा न सकी । आज उनके मृत्यु पर ऐसा लगता हैं भारतीय संगीत में एक शून्यता आ गयी हैं ।